यह श्लोक भगवान श्री विश्वनाथ (भगवान शिव) की स्तुति में है, जो विशेष रूप से काशी (वाराणसी) के अधिपति के रूप में पूजे जाते हैं। इसका सुंदर अर्थ निम्नलिखित है:
श्लोक:
सानंदमानन्दवने वसन्तं
आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥
भावार्थ :
मैं उस श्री विश्वनाथ (काशी के नाथ, भगवान शिव) की शरण में जाता हूँ,
- जो आनंद से परिपूर्ण और आनंद वन में वास करते हैं,
- जो आनंद के मूल स्रोत हैं और समस्त पापों का नाश करने वाले हैं,
- जो वाराणसी के स्वामी हैं और समस्त अनाथों के भी नाथ (रक्षक) हैं।
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