श्री विश्वनाथ स्तुति (Shri Vishwanath Stuti)
गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं,
गौरं गभीरतरमम्भुजटान्तरस्थम्।
गंभीरदंष्ट्रमणिवर्णविभूषिताङ्गं,
विश्वेश्वरं विजयसार्ध्रतनुं नमामि॥१॥
गङ्गोत्तरङ्गरुचिरं शशिशेखरं च।
हिमाद्रिकन्यापरिषेवितपादपद्मं,
काशीपतिं शरणमं मम विश्वनाथम्॥२॥
|| श्री विश्वनाथ स्तुति ||
🌿 हर-हर महादेव! 🌿
🚩 मूल स्तुति 🚩
गङ्गातरङ्गरमणीयजटाकलापं,
गौरं गभीरतरमम्भुजटान्तरस्थम्।
गंभीरदंष्ट्रमणिवर्णविभूषिताङ्गं,
विश्वेश्वरं विजयसार्ध्रतनुं नमामि॥१॥
🌿 अर्थ:
जो गंगा की तरंगों से सुशोभित जटाओं वाले हैं, गौरवर्ण के और गंभीर जल से भरे कमल के समान हैं। जिनकी गहरी चमकती हुई दाढ़ें मणियों से विभूषित हैं, जो सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर हैं, और जिनका शरीर विजय (सिद्धि) से युक्त है, ऐसे भगवान विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूँ।
🚩 मूल स्तुति 🚩
मत्तेभकुम्भदलनं फणिराजगात्रं,
गङ्गोत्तरङ्गरुचिरं शशिशेखरं च।
हिमाद्रिकन्यापरिषेवितपादपद्मं,
काशीपतिं शरणमं मम विश्वनाथम्॥२॥
🌿 अर्थ:
जो मदोन्मत्त हाथियों के मस्तक को चूर्ण करने वाले हैं, जिनका शरीर सर्पराज (वासुकि) से सुशोभित है। जो गंगाजी की तरंगों से प्रकाशमान हैं और जिनके सिर पर चंद्रमा सुशोभित है। जो हिमालय की कन्या (पार्वती) के द्वारा पूजित चरणकमल वाले हैं, ऐसे काशीपति विश्वनाथ को मैं अपनी शरण में ग्रहण करता हूँ।
🚩 मूल स्तुति 🚩
काशीपुरीविहरणं मधुरं मनोऽजं,
श्रीविश्वनाथ चरणं शरणं प्रपद्ये॥
🌿 अर्थ:
जो काशी नगरी में विहार करते हैं, जो अत्यंत मधुर और मनोहारी हैं, उनके श्रीचरणों की मैं शरण ग्रहण करता हूँ।
🔔 हर हर महादेव! 🔔
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